रेल सुरक्षा को नई दिशा: KLU टीम ने बनाया QR-आधारित सॉल्यूशन

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भारतीय रेल देश की सबसे बड़ी परिवहन व्यवस्था है, जो लाखों किलोमीटर लंबी पटरियों पर चलती है. इन पटरियों पर लाखों छोटी लेकिन जरूरी फिटिंग्स लगी होती हैं - क्लिप्स, बोल्ट, फिशप्लेट, बेस प्लेट और क्लैम्प जैसी धातु की चीजें. अब तक इनकी पहचान पेंट या स्टैम्प की मदद से की जाती रही है. समय के साथ ये निशान मिट जाते हैं और नंबर पढ़ना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में निरीक्षकों के लिए किसी फिटिंग का असली स्रोत, इंस्टॉलेशन की तारीख या मेंटेनेंस हिस्ट्री ढूंढना चुनौती बन जाता है. इस वजह से जांच धीमी हो जाती है और कई बार खराब या गायब फिटिंग्स समय पर पकड़ में नहीं आतीं.

इसी समस्या को देखते हुए, Top universities in Vijayawada, KL University के B.Tech CSE सेकंड ईयर के छात्रों ने एक नया और सरल समाधान तैयार किया है. टीम में शामिल हैं—भाव्या प्रणिता वेमुरी, एस. अलेख्या रेड्डी, हर्षिता रेड्डी, वी. श्रीमुख साई शरण, एम. वम्शिधर रेड्डी और एस. नरेंदर. इन छात्रों को उनके मेंटर सैदी रेड्डी ने पूरा मार्गदर्शन दिया. टीम ने मिलकर रेलवे ट्रैक फिटिंग्स के लिए एक एंड-टू-एंड QR आधारित पहचान प्रणाली तैयार की है, जो पूरी तरह आधुनिक और फील्ड में उपयोग के लिए बेहद व्यावहारिक है.

इस सिस्टम का सबसे अहम हिस्सा है लेजर एन्ग्रेविंग मॉड्यूल. नई या फिर रिफर्बिश्ड फिटिंग को एक होल्डर में रखा जाता है. उसे एक यूनिक ID दी जाती है और माइक्रोकंट्रोलर या रास्पबेरी पाई से जुड़े लेजर की मदद से उस पर QR कोड एन्ग्रेव कर दिया जाता है. हर धातु की सतह के लिए सही एन्ग्रेविंग पैरामीटर डेटाबेस में सेट किए गए हैं, जिससे QR कोड साफ और स्थायी रूप से दर्ज हो सके. इस तरह हर फिटिंग का डिजिटल पहचान नंबर हमेशा के लिए सुरक्षित हो जाता है.

QR कोड में केवल एक छोटा-सा ID नंबर सेव होता है. असली जानकारी एक केंद्रीय डिजिटल डेटाबेस में स्टोर रहती है. इसमें फिटिंग का प्रकार, निर्माता, बैच नंबर, इंस्टॉलेशन डेट, ट्रैक लोकेशन और पूरी मेंटेनेंस हिस्ट्री शामिल है. रेलवे इंजीनियर इस वेब डैशबोर्ड पर जाकर किसी भी फिटिंग को खोज सकते हैं, पुरानी रिपोर्ट देख सकते हैं और पैटर्न समझकर आने वाली खराबियों की पहचान भी कर सकते हैं.

इंस्पेक्शन टीम के लिए छात्रों ने एक एंड्रॉइड ऐप भी बनाया है. यह ऐप QR कोड स्कैन करते ही फिटिंग की पूरी जानकारी स्क्रीन पर दिखा देता है. फिल्ड स्टाफ इसकी स्थिति अपडेट कर सकता है, फोटो जोड़ सकता है और इंटरनेट उपलब्ध होने पर डेटा सिंक कर सकता है. ऐप इस समय सॉफ्टवेयर एक्सीक्यूशन स्टेज में है, जहां फीचर्स को बेहतर बनाया जा रहा है और फील्ड उपयोग के लिए तैयार किया जा रहा है.

यह पूरा प्रोजेक्ट दिखाता है कि KLU अज़ीज़नगर के छात्र न सिर्फ तकनीक समझते हैं, बल्कि असली समस्याओं के लिए असरदार समाधान भी सोच सकते हैं. उनकी यह पहल साबित करती है कि सही दिशा और मेहनत से स्टूडेंट्स ऐसे सिस्टम बना सकते हैं जो पूरे देश की रेल सुरक्षा और दक्षता को मजबूत कर सकें.

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